Adhar karika( Parmarth saar ) - Full Lecture series (Hindi)
|| श्री गुरु:।। || शाम्भवोपाय | |
श्ांतद्वमनसिशातेष्टष्ेष्टटट्वमृट{वमृटे । व्यवहारखःसपुनःपर्मार्यतदरैश्वरोमवति ॥ ३९ ॥ इ्रपरमार्धैने स्यित लोयक्रे ईग््रेहे व्यार में स्थित होद्कषे व्यवहारः रेषा भावित लोताहे साई वैन करताहु' जलवमन शणतदहोता है तवशात खा मालम् षोनाहे जवम प्रषन्न दाता है तव प्रमत्त मालम हाता हैजय मन मढ द्यत हे तयमठ मालम होतादै फिर इश्वर का श्र ॥ ३४ १ छलधरध्रसप्ोभिनंमलिनोक्रियतेयषागगनतलम् | तदत्मलतिवरिकारैरपपमष्टःपरःपुरपः॥ २५ 1 जेते मेघ व घधवां ब धरिदन करके गारा शयुक्त भी मलिन नहीदोतायोदी परम परस्प दशर मायके गुणन करिकेलिप्र नदीं ह्योनाहे \॥ ३५॥ एकस्मिन्वपिचघटेधमादिमलाहते्चघराःशेपाः । नमवन्तिमलेपेतायदहच्जीवोतददि ह ॥ ३९ ॥ जेते टकघटा धमके मलते मेलाभया तव ख्वघट मैल नषंहोति योँहीं सीव ख्व देहमे दु'खादि यक्त होता षवते दुःखो नदोह्यता १दद।॥ दै द्रियेपुनियताःकम्मशुखकुनेतेस्रमागायम् । ~ नाहवात्पेनममेतिलानतःकर्मनेववभ्नाति ॥ ३७॥ गण खत्वादिक् देह इन्द्रिया मे षदा घसति जीवे मेागाथै कमेकरते हे शने नहो करता छं मेरे कमं नदी ह यह जानने वालिके कमं नही वाधि खकतेहि ॥ ३० ॥ 4 अन्यशरीरःणछतंकर्ममवेदटोनदहरउत्यन्नः। तदवग्यंमाक्तव्यंसागारेवच्नयोसखनि्टः॥ ३८॥ प्रदलन्यक्ने श्वरीर करिकर कमं कियेगये जिनकर्मम देहउत्यन्नमदं तान कमं श्रवश्य मागकिया चाहिय वे कम भागने ना्होतेहं॥ <८॥ अगन्नानेापचितंयत्कमन्नानशिखिश्रिखारूटं ॥ ` वीजमिवद्हनदग्धंजन्यसमरथैःनतङ्नवति ॥ २९ ॥ पटिलि विना जाने जां कमं किथा फिर च्वान उत्यक्न मया तै त्रानरूप म्नि जलति फिरि जन्मनी दै सक्तं हे चेते अश्नमे जलाबोज नष्टी लमतादे॥ €
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न्ञाना्त्तेस््वःक्रियसाणं कम य॒त्तदेपिनाम,। नक्िष्यतिकतीर॑षुष्करपणंययावारि- 8.१. ,
2 च्नि(त्यकनिके ठपरंत ज्ञानो द्रुद्मेकतोहि तेहिकरिके.चिप्रनहीं होता " छेते जल कमलके पत्ते मे नही लपटता हे ्
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वागरृहसानसेरिदहकमंचयःक्रियतद्तिविषधाः77डः) एकापिनाइमेपां कत्य तेत्कमे खामच्वि ॥ ४६॥ १)
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पिदत कहतेहं वफीमन देह ये बमंकप्ते हे.्नानोप्मानताद्हे मै क,
न कर्मक नहीकतोहु १४९॥ ४ <
१८४ > कम्डफलवी ननः शाज्जन््विनाशे नचाव सन्स; 1; बृष्वेवसप्ागततसःसवितेवविभातिमाद्प्रः,॥.४२.;-
लव्र' दमेप्नके, वीह नाश्पया तव जन्मज्ञा नाग्रद्भचन्म न.शींहोता दे यदटवात'खुदेह रहितनहे जो यहटज(नतादि सा--खदा तेजद््म मर्यै-की
(माति प्रभनाखिन र्दतादहे ॥४२॥ . - श ०
¦ ?-यहदिपीकाव्रलंपवनेादतंदणदियेयाति। .+ मदहाणितहं दन्नं तेतदेवकन्प्रोशितत्वतिदः-) 8९ चेते मजकषे युयं एवनके वेगने , द्ोदणाकेो-पर प्र सोजानगहे रेदेद्दी वर्ने पदाभये तत्ववेत्ताके कमे ठडजातिदे \ ४३॥ चौ सादुबुतमाज्यंचि्ंयद लपुतैवत्तचिन्ः ५.२ ग्ररूति गुशेग्यस्तद त यक छतस्ततद्ैन्नात्मः १.४४ ॥ ` - दधन धृतकाठिनिधा किति दूचमे सेडनेमे'नदहीं दध्म मिलता सदेह चेनैन्य मायके गुगोमि जवर अलगभया फिरि जोवत्वको नदा पाप्रह्ोत्ताहे॥ ४४॥ गुसयमायागद्रन्नद्द् यययातमःसखशह्खांणुः! . , वाद्याभ्येतर चासी येन्धवचनयङ्धबेत्य मपः ॥ ४५ ॥ चम श्य श्रघकार का दुरि कस्को मवति प्रकाश करते हे मेही परप माया के गुने यनक्ञा दरि कपि वार भोर विचरता श्च जेमे मि्यज्ना पष्ाहनिमेन षता द्ेतेये निमेल रहितः रेषा सादजतादे1 ष्प् यद्वद् इाबयवा स्टद्वतश्वाविकारनातन 1 तेदव्लावर्न गमम तेद तवद्वाति ॥ १९ ॥ (1
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जेने माटीसे देह अंगमवघटादिका हे सेएयक् मालूम टोते हे तैषेष्यी स्यावरजगमदहेश्रहौतद्भौल ते मासित ष्टोता है ॥ ४६ ॥
स्वस्मात् सेचन्नाइद्धयःचसेनन्ञनातयोजाताः। सेाहटिलादिवबद हनात्यसंततेपिस्प्टुलिंग गणाः ॥ 89 ॥ ख रैण्यप घे चन्न से वहत देवक की जाती जोव छप उत्यत्न होतो हैं जेषे लाश्गल उति जोत्रभिनि रै तिने वहत चिनगारो निक्रलनी ह ॥ ४० तेय शसंगमदोपावद्वार्वधान्यनातयःखतुपैः । | जन्मलमंतेतावद्यात्रलन्नानष्ण्हिनाद्ग्धाः ॥ 8८ ॥ तेचेषचच{ननौ! युण.के {षय दोप शोनेस्ने वये ह त्लगे जन्म मरके परद्र दीति द, उ तकर अग्नि करिपै नदी जनते जेने चार जव्ादिकः वरपोसे बंधे ह तब तक जनते हे टूपौ अलग मय नही जमते॥४८॥ चिग्रणाचैतन्यात्मनि सर्वं गतिऽवखिताखिलाभार । कृसतेखषटिमयिदय सर्वज्ु एतेनयानात्मा ॥ ४९ ॥ खवमें स्थित स्वका श्रार्वार भूत अत्मा जेः चैतन्य पताम स्थित विगुणात्मिस, अपिद्धाः छपा. माया खद कर्ती हे पृष्न्तुः त्मा के स्यं नही करखक्तो हे । ४६॥ रज्वामुगङतैप्रमवविनाैययानस्तः। जगदुस्मत्तिविना भौ न तत्का रलेस्तसत ददि इ ॥ ५० ५ {नित उत्पति विनाशक कारण सपं हे वष्ट उत्यत्नि विनाथ रन्ल॒मे नष्ठी ता ह रेतेडी जगत को उत्पत्ति विनाश जगत्कारण दैश्वर निषे नही
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त हं ॥ ५०४ ४ लन्दविनाश्नगसनागसनमसज्ैःसंगवियर्चितेनिर्यं।
अआकाशद्वघटादिषु सवपैतमाखवंतेएमेतः ॥ १ ॥ ^
मवसे अलग खवा त्रात्मा जन्य विनागगमन्रगम सप्र मलोकर्क
नित्यदी रहिते नेमे{वटाद्विवस्च विपे आराग खवमे खनसे श्रलगदे 0 १९४
‹ कर्मशुभाशुमल्नितेःउखद्ुःखेयेैगोमवन्मुपाधोनां । तत्व सरगद्रदस्तस्करसंगुादतच्करवत् ॥ ५२॥
गृष्य पाप कम से उत्पत्त चु ठु ण्व जिन वारिके देष्टादिक्घी के षयोग
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१० ` प° सा०।
होला ह तिन देक्ठादिकें के संगे चे आत्मा भो बद टोताहे चम्तु मे वद्ध रः ९ ५ ॥ [र
नह ३ जच चोर चोसो क्रिया वाथा गया चेोस्के संगीमाते पता चोरौ
गृद्धी दोर वयि लाते हि ४२१ ` -- > ~
दैयुणवारणगेचंरसंगःपुरुपस्व या वदि इ भवति । तावन््ायापाकैःसंसारोरद्वद्वामाति ॥ ५३१५... ˆ छतं जोचक्ता देह इन्द्रिय विप्यका षाय दहि तव त्व संखर वि माया को फंयरी करिके चधा रेखा मालूम होता ॥ १ ॥ स(ठत्पटपुषवान्यवधनमेागविभागसंमृढः | ' जन्मनरामरणसये चक्र इ वभ्वाम्यतेनंतुः ॥ ५४ ॥
` माता पिता पुच व॑ धनमेागमे संयुक्तं जोच जन्मप्ररणलया सप चक्र, भिभरमारेगाघ्ुमर्तीद्े 1 १४॥ = लोकव्यवहार यद्र ङाविद्याखुपासतेमूढाः 1 तेलननमरणधमगेरे न्तस र्ल्यखिद्यंते ॥ ५५ ॥ . लों आज्चानो लीषं लोकव्यवहार छन आदान मे फने रहति हे तिनका न्म् मर नदं दूटता वे अन्यनरक्मे. प्रप्र दोषे दुःखो रौति हें ॥ ५५११ शडिसफेन वुददाद्ववलस्यधूमेाङ्गमेाययावन्हेः तदहव्खरूपमृतामायैपाकौर्तिताविष्णोः.॥ भद ॥ ° जेषे लले घोतलता व फेना घ वुज्ञा होतें वैसे अम्नि मे
“न 4 शुबा होता ह तेगरे्ो चिष्णु कौ माया कटो. जातोहे ॥ध६॥ , } ४
एवं दैतविकल्याो म्म खरूपं पिमे ष्िनी माया । उल्युज्यसकलनिष्कैनमद्ै तं भावये हा ॥ १५७ ॥ , रेषे वैल को कल्पना धमप ओ सव के मेद्ावतोःमायाक्ता देग्ि षे क्लाहोन बहुत ब्रह्म वी भावना करे \ १०॥ , - । यद तलिलेखलिलं त्तो रचीरःसमीररेवा थः । अ सदिभकेगसिमावनयातगपयलभपवाति ।१५८॥ खानम् लन तिल लातद्धि न टघमफि खग ६ मिलिणातोहे तैखेष्ो लीव भक्ति करि व श भ
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ईलदैतसमुडेभावनयानद्यमावसुपास्ते। कामेाष्ःकण्ोकखमेबहमा वला कयतः ॥ ५९ ॥ इमी प्नस््सते षार विपे भक्ति करिकैब्रह्मकी ठपासना करते तिनके मेहरा नी होता वेव प्रय मय देते हे ॥ ५६ ॥
विगतेपाधिःस्फटिकःखप्रमयाभातिनिर्मलेायहत् । चिदहीपखमप्रभयातवाविभातोहनिसपाधिः ॥ ६० ॥ जेते ्फटिः पत्थर का र्ग दुंडाइ डे तै अपने तेज करिकै निमैल श्चाभाक्ते प्राप दोला हे तेसेह्ी चे7न्य दोप उपचि स्हितहोनिसे श्रपने तैल करि प्रकाशित द्योता हे १६०४ ~ >, गुणकारणगंरोरप्रा रीस्तन्माचनातखखडुः चैः । अपराटष्ाव्यापोचिद्धुपोहंखद्ाविमलनः ॥ ६१॥ गुण षत्वादि इद्धिय गण शरोचादि शरीर प्राण इनत उत्पत्र सुष्दुख स रित व्याप्त मल रहित चेनन्य सपमे ष्दा हेारेषो मन मे मावना
राशि ॥ ६1 ॥ -~ ~ ~ म ए दरशटायोताघातास्यर्शयितारसवितागृङ्ीताच ॥ रोदे हेन्दरियधी विवजितःस्यान्नकत सौ ॥ ६२ ॥ देखताहेमुनतादिसुगन्धक्षा लेता ्वशे करता रप्रकालानता हे सा्काद्ेरेण जो लीवर ठो देहडन्दरियते अलग दे रुच नदं करता ददे! ६२ एकानैकचावखिते मचरव्ययेगतेएव्याप्तः 1 व्याप्याकागवद खिलंन कचिद् चास्तिसन्दं हः ॥ ६३॥ ~ ण्ह चो अकागं को नाई चवमे भ्थित दे.अहमैश्वये सरके सर्ज॑च च्याप्र डे ¶ष्मे केह ष्देष्टं नही दे 0६३ ॥ न्याव सश्रनिष्कलसकलंयदैवभावयति। मेगडगद्नादिखक्रमस्तदैवपरमेष्वरोभवति ॥ ९8 निष्ठानं कलया सहित ओ ला खदित जो कु है सा खन भात्माहीषे नो कुशचदेच्विमूनि चडनाहि यहवपएल जय रभावना करे तव मेहते छुटिनात्म
हे परमेश्लर ष्टो लाता दे» &४ ॥
= १
Parmarth saar is also known as 'Adhar karika' in kashmir shaivism and these two names are equally popular in several part of india, Here we will talk about Adhar karika and it's relevence in kashmir shaivism.
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