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Spand Karika- A Deep Lecture To Kashmir Shaivism (Hindi)

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Spand Karika- A Deep Lecture To Kashmir Shaivism (Hindi)

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|| श्री गुरु:।। || शाम्भवोपाय | |

चैतन्यमात्मा ||4॥।

सर्वोच्च चेतना की स्वतंत्रावस्था हर वस्तु का सत्य है। इस सूत्र में आत्मा' का मतलब है - हर कुछ का सत्य (र२८क॥ाए ० ०ए०शा।ए9), सर्वोच्च चेतना

($प9०॥० (णाइटं०पआ०55) | चैतन्य ही सब वस्तुओं का सत्य है। क्‍यों ? क्‍योंकि जो चेतना में नहीं आया है उसका अस्तित्व ही नहीं है। चैतन्य की क्रिया चेतन एवम्‌ निश्चेत में एक जैसी होती है। जो चेतन है वहाँ चैतन्य की क्रिया है, जो चैतन्य के प्रति सचेत नहीं है वहाँ भी तो चैतन्य की क्रिया है। अतः चैतन्य वह है जो औरों को भी चेतन करता ह। यह ज्ञान एवम्‌ क्रिया में पूर्ण स्वतत्र है। यही सत्य चैतन्य कहलाता है जिसका मतलब होता है पूर्ण स्वातंत्र्य | सारा ज्ञान एवम्‌ सारी क्रियाएँ एक चैतन्य से जुड़ी हैं जो पूर्ण स्वतंत्र पराचेतना (5606 (णा$००प्र%०5७) है | मात्र परशिव के पास पूर्ण स्वतंत्र पराचेतना होती है।

इस पृथ्वी से लेकर अनाश्रित शिव तक सब चेतन शिव पर निर्भर करत हैं। यद्यपि शिव की पूर्ण स्वतंत्रावस्था में कई दिव्य पहलू हैं जैसे अजन्मा, सबमें व्याप्त, सम्पूर्ण तथा सर्वज्ञ - ये शिव के अद्वितीय पहलू नहीं हैं। अद्वितीय पहलू है पूर्ण स्वातंत्रय जो और कहीं नहीं मिलता। इस सूत्र में पूर्ण स्वातंत्रय का पहलू (७5७००) ही दर्शाया गया है। यह पहलू “चैतन्य” शब्द में ही समाया हुआ है।

“चैतन्य” - सर्वोच्च चेतना की पूर्ण स्वतंत्रावस्था है। यदि यहाँ यह दर्शाना होता कि पूर्ण स्वातंत्र्य के अतिरिक्त दूसरे पहलू भी हैं तो रचनाकार 'चेतना' शब्द का उपयोग करता (चेतना 5८ होश, सजगता)। लेकिन मात्र जिस एक पहलू का ही अस्तित्व है वह है स्वातंत्र्य | दूसरे पहलू सर्वव्यापकता, आनन्द, पूर्ण इत्यादि का कोई अलग अस्तित्व नहीं है। “चैतन्य” शब्द से पूर्ण स्वातंत्रय का ही बोध प्रकट है। अतः यहाँ चेतन्य का मतलब चेतना की पूर्ण स्वतंत्रावस्था है। यह स्वतंत्रावस्था ही स्व" (5०) है। यही सभी वस्तुओं का स्व-आत्मा है। संसार में जो भी प्रकट अथवा अप्रकट है उसको आत्मा शिव है या वह शिव की एक अवस्था है। अतः शिव ही सर्वत्र है।

अभी हमने कहा कि स्वातंत्र्य के अलावा भिन्‍न पहलुओं का अस्तित्व है ही नहीं। ऐसा क्‍यों कहा गया? इन भिन्‍न पहलुओं को शिव से अलग क्‍यों कर दिया गया? क्षण भर के लिए मान लें कि ये भिन्‍न पहलू हैं, तो प्रश्न उठता है कि क्या इन पहलुओं में 'स्वातंत्र्य/ है? यदि नहीं तो ये जड़ हैं, बिना चेतना के। अब यदि यह कहें कि हाँ ये सब पहलू स्वातंत्र्य से सिक्‍त हैं तो फिर भिन्‍न-भिन्‍न पहलुओं को मानने के

This is a One of the introductry Hindi Language Lecture Series Course of Tantra .

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Kashmir shaivism and it's Philosophy is derived from the ninety-two Tantras, Which are also collectively known as Agamas, They were derived from the teaching of Lord shiva given to Devine mother parvati Or Shakti. From these Tantras, sixty-four are considered purely monistic, eighteen are monistic-cum-dualistic, and ten are dualistic. Kashmir Shaivism derives its teachings from the sixty-four monistic Tantras Kashmir shavism also known as "trik Shavism"

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